मेहमान निर्देशक के बारे में
अभिषेक भारती (मेहमान निर्देशक)
रंगमंच में प्रतिष्ठित संगीत नाटक अकादमी उस्ताद बिस्मिल्लाह खान युवा पुरस्कार से सम्मानित, इंडियन थियेटर पंजाब विश्वविद्यालय चंडीगढ़, के विभाग से अभिषेक भारती डोगरी लोक नाट्य में पी.एच.डी. कर रहे हैं । जून 1984 में जन्मे अभिषेक भारती ने 12 साल की उम्र में रंगमंच की शुरुआत कुमार ए. भारती के कुशल मार्गदर्शन में नाटक “सूरज कत्ल नहीं होते” से की थी । उन्होने कम से कम 25 नाटकों में विभिन्न पात्रों को निभाते हुए अपने अभिनय को निखारा । 14 वर्ष की आयु में उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार मिला और उन्होने रंगमंच समारोहों में भी कई पुरस्कार प्राप्त किए । 17 साल की उम्र में उन्होने कुमार ए. भारती द्वारा लिखित “हारा हुआ युद्ध” नामक नाटक का पहली बार निर्देशन किया उसके बाद अन्य नाटक जैसे “गुड बाय स्वामी”, “पासपोर्ट”, “पिंड कुन्ने जोया दिये”, “जनता पागल हो गई है”, पचास साल बाद” आदि नाटकों को निर्देशित किया । ये पिछले 21 सालों से थियेटर के क्षेत्र में काम कर रहे हैं और इन्होने थियेटर में प्रसिद्ध निर्देशक जैसे पद्मश्री बलवंत ठाकुर, कुमार ए. भारती, मोर्टिन क्रेग, गुरशरन सिंह, डॉ. सुधीर महाजन, पार्थो बंदोपाध्याय, प्रोबीर गुहा, डॉ. नवदीप कौर, कवि रतन, भूमिकेश्वर, प्रो. नवनेन्द्र बैहल, डॉ. सुनीता धीर, केवल धारीवाल, वसंत जोसलकर, प्रो. महेंद्र कुमार, संजय उपाध्याय व अन्य कई जाने-माने निर्देशकों के साथ काम किया ।
सन 2008 में जम्मू विश्वविद्यालय से डोगरी में एम. ए. को पूरा करने के बाद ये पंजाबी विश्वविद्यालय पटियाला में थियेटर और टी. वी. विभाग में प्रवेश लेने चले गए और वहाँ इन्हें प्रदर्शन कला के मास्टर्स में विश्वविद्यालय द्वारा स्वर्ण पदक से सम्मानित किया गया । उसके बाद वे जम्मू वापिस आए और वहाँ “विसर्जन”, “गगन दमामा बाज्यो”, “अग्नि और बरखा”, “दा लास्ट कॉलोनी”, “बल्ड एण्ड ब्यूटी”, “मैकबेथ”, “दा क्राउन इफ बल्ड” आदि नाटको का निर्देशन किया और वहाँ सर्वश्रेष्ठ नाटक के लिए राज्य पुरस्कार व 2010, 2011, 2012, 2013, 2014, 2015 व 2018 में जम्मू कश्मीर अकादमी ऑफ आर्ट कल्चर एण्ड लैंगवेजिज़, जम्मू एण्ड जे. के. एफ. एम. ए. सी. श्रीनगर से सर्वश्रेष्ठ निर्देशक के लिए पुरस्कार प्राप्त हुआ । उन्होने सत्र 2012-13 में इंडियन थियेटर पंजाब विश्वविद्यालय के विभाग में सहायक प्रोफेसर के रूप में भी कार्य किया है ।
अगर आप लेखक, अभिनेता या फिर मंच से जुड़ी किसी भी विधा को व्यक्त करना चाहते हैं तो उसके लिए रंगमंच पर प्रस्तुति देना अति आवश्यक है । जिसके लिए मंच, कलाकार व दर्शकों का होना अनिवार्य है । इन सबके बिना किसी भी मंचीय प्रस्तुति की कल्पना करना भी व्यर्थ है ।